लखनऊ। राजधानी लखनऊ में ब्लैक फंगस मरीजों को दोहरी समस्या झेलनी पड़ रही हैं। बीमारी के साथ बदइंतजामी भी झेलनी पड़ रही है। ब्लैक फंगस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाएं और इंजेक्शन बाजार से गायब हो गए हैं। गोमतीनगर से लेकर चौक और अमीनाबाद स्थित थोक दवा की दुकानों में भी जीवनरक्षक इंजेक्शन तक नहीं मिल रहे हैं। इंजेक्शन की कालाबाजारी हो रही है।
लखनऊ में पांच हजार से ज्यादा थोक व फुटकर दवा की दुकानें हैं। अभी तक मेडिकल स्टोर पर रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं मिल रहा है। मरीजों की जान बचाने के लिए तीमारदार एक से दूसरे मेडिकल स्टोर में भटक रहे थे। इंजेक्शन की कालाबाजारी शुरू हुई। बड़े पैमाने पर नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन भी पुलिस ने बरामद किए। अब कोरोना का प्रकोप कम हुए। ब्लैक फंगस का प्रकोप बढ़ा। तो बाजार से ब्लैक फंगस के इलाज में इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन का टोटा हो गया है। केजीएमयू रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ब्लैक फंगस के प्रत्येक मरीज को रोज एक एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन लगाया जाता है। एक माह तक लगातार मरीज को इंजेक्शन लेने की सलाह दी जाती है। इस लिहाजा से रोजाना 50 इंजेक्शन की मांग है।
खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने ब्लैक फंगस की दवाओं की उपलब्धता के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। बिना दवाओं के मरीज तड़प रहे हैं। केजीएमयू में ब्लैक फंगस की दवाएं नहीं है। मरीजों को दवा की पर्ची थमा दी गई है। मरीज एक से दूसरे मेडिकल स्टोर में भटक रहे हैं। यही हाल दूसरे निजी अस्पतालों में भर्ती मरीजों का है।
राजधानी में ब्लैक फंगस बेकाबू: दवाओं की कालाबाजारी
